रूहरिहान = आत्मा की आत्मा से/ आत्मा की परमात्मा के साथ बातचीत
बल्लभ = पृथ्वी के राजा के अर्थ में/इसका एक अर्थ प्रिय भी / दुनियावी रिश्तो से पार
कल्प = 5000 वर्ष का एक चक्र का नाटक / ड्रामा
युग = सृष्टि चक्र का ¼ एक चतुर्थांश/ 1250 वर्ष
वर्सा = शिवबाबा से मिलने वाले ज्ञान योग के बल से सतयुग मे प्राप्त हो ने वाली राजाई अर्थात् राज्याधिकार |
पारलौकिक = इस साकारी लोक या दुनिया से पार/ बहुत दूर/सूक्ष्मलोक से भी ऊपर/ दुनियावी रिश्तों से परे
देही = देह को चलानेवाली /मालिक/आत्मा |
विदेही =बिना देह की / शरीर से बिल्कुल अलग
कलंगीधर = कलंक को धारण करना |
मध्याजी भव = स्वर्ग के सम्पूर्ण रूप ( विष्णु के चतुर्भुज ) का स्वरूप को याद करो
धनी धोनी = मार्गदर्शक
मास्टर ज्ञान सूर्य = ज्ञान-सूर्य (शिव बाबा ) का शिष्य/ बेटा /स्वरूप।
निराकार सो साकार = साकार मे कर्म करते हुए अपने निराकार स्वरूप (stage) की स्मृति /याद में रहना
पोतामेल = हिसाब-किताब, शिव बाबा को प्रतिदिन का पोता मेल दे दिया तो धर्मपुरी में नहीं आना पड़ेगा
स्वदर्शन चक्रधारी = स्वयं को आत्मा समझते हुए सृष्टि चक्रऔर 84 जन्मों को स्मृति /याद में रहना
सतोगुण = अच्छे गुणधारी , विशेष रूप से सतयुग फिर 14 कला सम्पन्न त्रेता युग तक की यह स्थिति ।
रजोगुण= राजसिक/ उपरोक्त दो युगों से कम गुण विशेषकर द्वापर से जहां ईर्ष्या -द्वेष रूपी रज/ धूल प्रारम्भ होती हैं।
तमोगुण = गुणों में सबसे निम्नस्तर/(4 कला सम्पन्न कलियुग से/ भारत मे अरबो के आक्रमण से शुरू )
उतरती कला = उत्तरोत्तर या सतयुग से धीरे धीरे 16 कलाओं में ह्रास/कमी आना
शो करना /बाजी = दिखावा /नाम मान शान के पीछे चलना /प्रसिद्धि के लिए प्रयासरत ( संकर/ मिश्रित शब्द)
मुंझना = समझ में न आना
राजाई= बादशाही , ( विशेषकर सतयुग व त्रेता युग में राज्य प्राप्त करने के सन्दर्भ में)16 कला सम्पन्न - मानव स्वभाव/व्यवहार की सर्वश्रेष्ठ कला (१००% सर्वगुण सम्पन्न )
निर्विकारी = विकार (बुराइयों ) रहित (रजो , तमो से सम्बन्धित
डबल ताजधारी = संगमयुगी ब्राह्मण का और सतयुगी देवता दोनों के आभामंडल की लाइट का ताज धारण करना ।
डबल अहिंसक = प्रथम हिंसा का विकार और मन वचन कर्म की हिंसा से मुक्त हो ना ।
कुख वंशावली = गर्भ से जन्म (लौकिक)।
मुख वंशावली = ब्रह्मा मुख से जन्म ( अलौकिक)।
अकालमूर्त = जिसका काल भी न कुछ बिगाड़ सके/ अमर/मृत्युंजय स्वरूप।
सालिग्राम = आत्माएं/ जल के बहाव से नदी - समुद्र में सबसे चिकना सुन्र पत्थर जो हिन्दू धर्म में पूज्य शिव बाबा हम बच्चों को शालिग्राम कहते हैं जिनकी शिवलिंग के साथ भक्त लोग पूजा करते हैं।
मूलवतन = परमधाम/ सर्व आत्माओं का मूल घर।
रस = प्राप्ति का सार/ आनन्द।
विनाश काले विपरीत बुद्धि = अन्त समय दुर्बुद्धि का आना /अन्त समय भगवा न को भूलना विनाश का ले प्रीतबुद्धि -----पांडव विनाश काले विपरीत बुद्धि --कौरव। जो सृष्टि के अंत के समय विनाश के निमित्त बनते हैं।
(41)मा या =मा या से ता त्पर्य संन्या सी सा धक धनसम्पत्ति के मो हसे
लेते हैं, कि न्तु मुरली में बा बा ने का म ,क्रो ध, मो ह,लो भ आदि 5
वि का रों को मा या की संज्ञा दी है।
(42) बलि हा र जा ना =न्यौ छा वर/समर्पि त/कुर्बा न कर देना ।
(43) वि कर्मा जी त =का म, क्रो ध आदि वि कर्मों से दूर/शून्य।
(44) वर्सा =परमा त्मा / बड़ो से सम्पत्ति का स्वतः बच्चों / छो टों को
मि लना ।स्वर्ग का वर्सा लेने और स्वर्ग में ... पूरा पवि त्र बनें तो
रा जा ई पद मि लता है।बा प से पूरा वर्सा लेने के लि ए पवि त्र जरूर
बनना है।
(45) नष्टो मो हा =पुरा नी दुनि या से मो ह ममत्व का त्या ग, नि र्मो ही
स्थि ति ।घरबा र सम्भा लते, पुरा नी दुनि या में रहते सभी से ममत्व
मि टा देना । देह सहि त जो भी पुरा नी ची जें हैं उन्हें भूल जा ना ।
(46) ममत्त्व रखना =मो हमा या /अपनेपन के भा व में रहना ।
(47) मा टेले/मो तेले और सौ तेले
=जो माँ को पसन्द हो / सगा , जो सौ तेला न हो ।जो पढ़ा ई और यो ग
पर अटेन्शन नहीं देते, जो मा तेले बन बा प पर पूरा -पूरा बलि हा र
जा ते हैं उन्हें रा जा ई पद प्रा प्त हो ता है।
इसके वि परी त जो पढ़ा ई और यो ग पर पूरा टेंशन नहीं देते वह
सौ तेले।जो सौ तेले हैं, बलि हा र नहीं जा ते हैं वो 21 जन्म ही प्रजा में
चले जा ते हैं।
(48) सत्कर्म =वह पुरुषा र्थी कर्म जो भवि ष्य/ आगे के लि ये
सुरक्षि त हो ।
( 49)अकर्म = जि स कर्म का खा ता ही न बने अर्था त् सत्कर्म के
खा ते का क्षी ण हो ना (देवता ओं का कर्म इसी को टि में आता है।)
(50) वि कर्म = जि स कर्म से भवि ष्य में दुः ख का खा ता बढें।
(51) नि र्लेप= जि स पर वि का रों का लेप ना लगा हो / नि र्वि का री
स्थि ति स्टेज/ जि स पर पा प और पुण्य का लेप ना लगा हो ।
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