मनमोहिनी दीदी जी की
दिव्य विशेषताएं
🌺 परिचय 🌺
मनमोहिनी दीदी जी का लौकिक नाम गोपी था। आप एक बहुत ही नामीगिरामी धनाढ्य सिंधी परिवार से थी। यज्ञ की स्थापना के समय किसी की परवाह किए बिना अनेक बंधनों को तोड़ते हुए आप अपनी लौकिक मां क्वीन मदर और लौकिक बहन शील के साथ झाटकू रूप से समर्पित हो गई। आपमें अनेकानेक विशेषताएं थी। आपका बाबा से अटूट प्यार था। हर पल, हर बोल में बाबा बाबा ही निकलता था।
आप दिलवाला की सच्ची दिलरुबा थी। दीदी को अव्यक्त नाम मिला मनमोहिनी। दीदी के सानिध्य में जो भी आता, दीदी उसका मन ऐसे मोह लेती थी जो वह बाबा का बन जाता था।
विभाजन के बाद सन 1952 से भारत वर्ष में जब ईश्वरीय सेवाएं प्रारंभ हुई, तब आप पहले पहले दिल्ली, इलाहाबाद आदि स्थानों पर त्याग तपस्या के आधार पर कई सेवा केंद्र खोलने के निमित्त बनी और मातेश्वरी जगदंबा के अव्यक्त होने के पश्चात सन 1965 से आप फिर से बाप दादा के साथ मधुबन में रहकर यज्ञ की इंटरनल कारोबार को पूरे प्रशासन को संभालने के निमित्त बनी।
सन 1969 में ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के पश्चात दीदी और दादी की जोड़ी ने पूरे यज्ञ को संभाला। दोनों ने मिलकर मात पिता के रूप में देश विदेश की सर्व ब्राह्मण परिवार की निस्वार्थ पालन की और पूरे विश्व में सेवाओं का विस्तार किया। दीदी दादी की जोड़ी को सभी कहते थे - शरीर दो है, आत्मा एक है। ऐसी एकता का प्रमाण देकर, एक दो की राय को सम्मान देते हुए यज्ञ को निर्विघ्न बनाया।
28 जुलाई 1983 में दीदी जी अव्यक्त वतनवासी बन एडवांस पार्टी में चली गई।
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