भ्राता जगदीश भाईजी🌹
☝️ 'दुसरों के अवगुण हमारे चित्त पर न ठहरे- - मिटाने का एक ही तरीका है ->ईश्वरिय स्मृति अर्थात बाबा कि याद...जैसे रिकार्ड📀 कि हुई टेप पर जब दूसरी रेकार्डिंग करेंगे तब पुराना अपने आप मिट जाता हैं...उसी प्रकार पुरानी बातों को ,संस्कारों को मिटाने के लिए ईश्वर कि,उनके गुणों की स्मृति करो, उनके गुणों अपने मे धारण करो तो पुरानी बातें मिट जाती हैं...😌एकाग्रता😌
१) वैचारिक एकाग्रता:- मन का स्वभाव है कुछ- न -कुछ सोचते रहना।हमारा मन इधर-उधर भागे नहीं, जो आवश्यक विचार है उन्हीं तक सीमित रहे, व्यर्थ न सोचा करें ,संकल्पों का लीकेज अर्थात व्यर्थ बहाना ना हो 👈🏽इसको कहते हैं वैचारिक एकाग्रता
👉🏽जब मुरली सुन रहे हैं अथवा क्लास सुन रहे हैं, ज्ञान की चर्चा सुन रहे हैं उस तरफ ही मन रहना चाहिए, उसके बारे में ही विचार चलने चाहिए👉🏽 इससे आपको ऐसा लगेगा कि , मैं बहुत रिफ्रेश हुआ ,बहुत शक्तिशाली विचार मुझे मिले, जैसे कोई ताकत दार चीजें खाई हो ☝️वरना बहुत थोड़ा लाभ होगा यह है वैचारिक एकाग्रता।
👉🏽 इसका मतलब है व्यर्थ विचार या संकल्प नहीं आने चाहिए वह का विचार नहीं आने चाहिए ,बिना मतलब के ,बिना संबंध के विचार नहीं आने चाहिए... इससे हमारी आध्यात्मिक एवं मानसिक शक्ति व्यर्थ जाने से बच जाएगी।
'2) संबंधात्मक एकाग्रता :- हमारे संबंध अनेकानेक हो गए हैं इससे हमारी बुद्धि भटकती है। सतयुग में बहुत थोड़े से संबंध होते हैं, संगम युग में जब हमने यह अलौकिक जन्म लिया है शिव बाबा और हम उनके बच्चे आपस में बहन 👫भाई 👈🏽यह एक हमारा संबंध है ।
👉🏽जो आत्मा के संबंध है वह शिव बाबा से है 👉🏽हम उनके बच्चे हैं और शिव बाबा से यह संबंध होने के कारण आपस में हमारा भाई 👬भाई का नाता है।
☝️ जितना हम अपनी बुद्धि समेट लेंगे, बिखरेंगे नहीं तब एक बाप से संबंधात्मक एकाग्रता होगी।👉🏽 ताना-बाना हमने बहुत लंबा कर दिया अब उसको समेटना है। सर्व संबंध हमारे एक बाबा से है 👉🏽एक के साथ ही हमारे सर्व संबंध है👈🏽 यह है सामानात्मक एकाग्रता। ☝️जब हमारा माता-पिता शिक्षक सतगुरु साजन- सखा, मार्गदर्शक एक है तो एकाग्रता सहज होगी ना! एक से ही एकाग्रता होती है ना !अगर हमारा संबंध सब तरफ बिखरा हुआ है तो व्यग्रता आएगी एकाग्रता नहीं।
👉🏽बाबा कहते हैं, ' बच्चे मुझे एक ही शरण लो' 👉🏽 यह है सम्बंधात्मक एकाग्रता, जिसमें सर्व संबंध एक के साथ होते हैं , सर्व वह संबंध तोड़ एक संग जोड़ इसका नाम योग है।
3) ऐच्छिक एकाग्रता एकाग्रता अर्थात इच्छाओं की एकाग्रता☝️ अगर इच्छा है आशाएं अधिक है तो आदमी जैसे दो घोड़े पर सवार है😬
☝️ इच्छाओं को कम करो, जो श्रेष्ठ इच्छा है , जिनसे हमारा मुक्ति और जीवन मुक्ति का मकसद है, मुख्य उद्देश्य -वो श्रेष्ठ इच्छा रखो
👉🏽 इच्छा के बिना मनुष्य जी नहीं सकता ,इच्छा बिना होता है मुर्दा💀! उस को जला डालते हैं। इच्छायें चाहिये लेकिन मनुष्य को भटकाने वाली इच्छाएं नहीं, उसको ठिकाना देने वाली, गति -सद्गति दिलाने वाली, इच्छाएं होनी चाहिए बिना कोई इच्छा भगवान की याद भी ठीक जाना समा जाना ही उच्च कोटि का योग कहलाता है।
👉🏽 इसमें इतनी खुशी और शक्ति मिलेगी कि दुनिया के सर्वर खजाने उस अनुभव के आगे तुच्छ लगेंगे।
3) लक्षात्मक एकाग्रता :- लक्ष्य एक हो..
☝️अगर हमारा लक्षण बदलता रहेगा तो एकाग्रता कैसे रहेगी ? ☝️अगर लक्ष्य न हो तो लक्षण भी नहीं आएंगे.।✌️ दो बातें बाबा ने खास कही है , *जैसे चित्र वैसे चरित्र 👉🏽आपके मन में और बुद्धि में जिसका चित्र रहेगा वैसा चरित्र आने लगेगा👍 👉🏽 लक्ष्य और लक्षण शब्द सुनते ही मुझे लक्ष्मण और रेखा की याद आ गई। 👉🏽कहते हैं , *लक्ष्मणरेखा लक्ष्मण का अर्थ क्या है? जिसके मन में लक्ष्य रहे वही लक्ष्मण है
👉🏽 लक्ष्मण हमेशा राम के साथ रहा ...उसको वनवास जाने के लिए किसी ने नहीं कहा था फिर भी वह राम के साथ रहने के लिए मां-बाप ,भाई -बंधु ,राज्य- वैभव और पत्नी तक को छोड़ जंगल चला गया, राम के साथ
👉🏽 भाव यही है जो उसके मन में लक्ष्य ही था मैं राम के साथ रहूं!👉🏽मन में जो लक्ष्य है उसके मर्यादाओं की जो रेखा है उसका उल्लंघन करने करेंगे तो रावण उठा कर ले जाएगा ....
☝️ईश्वरीय मर्यादाओं की रेखा मर्यादाओं की बात तब आती है जब मन में कोई लक्ष्य हो ।
👉🏽लक्ष्य एक ही है लक्ष्य अटल -अचल हो, कभी हिले नहीं, लक्ष्य भूले नहीं, जिसे कहते हैं धुन सवार हो। *जाए श्रेष्ठ पद पाने के लिए ,आगे बढ़ते रहना, बढ़ते ही रहना बहुत जरूरी है।
👉🏽 ऐसे लोग जो लक्ष्य को सामने रखकर शक्तिशाली इच्छा शक्ति से बढ़ चलते हैं। 👉🏽कुछ भी हो आंधी हो या तूफान वक्त ही मंजिल पर निश्चित रूप से पहुंच जाते हैं।
बौद्धिक एकाग्रता :- एकाग्रता होगी निश्चय से! अगर शंका रहेगी- किसी बात पर प्रश्न उत्तर रहेगा, अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है तो बुद्धि स्थिर कैसे होगी?
👉🏽 निश्चय से ही रूपांतर अर्थ परिवर्तन होता है
👉🏽 हमारी बुद्धि तभी एकाग्र हो सकती है जब हमारी बुद्धि निर्माण कारी हो ना कि विनाशकारी हमारी बुद्धि जोड़ने वाली हो ना कि तोड़ने वाली, हमारी बुद्धि मंथरा का काम करने वाली ना हो...
वीरामात्मक एकाग्रता :- मन को बुद्धि को वाचा को कर्मों को विराम (फुलस्टॉप)देने वाली एकाग्रता !...वीराम माना बिंदु लगाना ...जहां मन को बुद्धि को वाचा को विराम लगाना हो फौरन वहाँ विराम लग जाए ...ऐसे नहीं कि बुद्धि हमारे को घसीट कर के ले जाए 😆👉🏽कहीं से कहीं हमारी मर्जी जो सोचे ,जितना सोचे वही सोचे ,उतना ही सोचे। 👉🏽बाबा ने हमें ज्ञान दिया है एकदम स्पष्ट! बाबा कहते हैं कि हमारी बुद्धि एकदम क्लीन और क्लियर होनी चाहिए, 👉🏽 बुद्धि में अस्वच्छ विचार ना आए... अशुद्ध विचार ना आए ...सात्विक विचार आए ...ठीक निर्णय आए... इसके साथ-साथ जहां हम विचार को रोकना चाहे, खत्म करना चाहे वहां हम रोक सके ,अर्थात विराम दे सके।
☝️ बाबा ने जो तीन बिंदु बताएं उनके साथ यह भी एक बिंदु है उसके बिना एकाग्रता नहीं होगी।
भावात्मक एकाग्रता:- अर्थात भावनाओं की एकाग्रता इसका मतलब है एकरस अवस्था 😌☝️सदा आनंद में योगी जो होता है वह सदा आनंद में रहता है।
👉🏽 हमारी भी स्थिति सदा आनंद में रहे ,शांतमय रहे, प्रेममय रहे इसमें उतार-चढ़ाव ना आए...👈🏽 यह है भावनात्मक स्थिरता! भावनात्मक एकाग्रता विचार कम आते-आते धीरे-धीरे यह होगा फिर चाहे कुछ भी हो निंदा स्तुति मान-अपमान ,हर्ष -शोक जय- पराजय ,स्थिति एकरस रहेंगे... परिस्थितियां आएंगे लेकिन जो योगी है इन सब में होते हुए भी आनंदमय रहेगा... उसमें एक ही इमोशन होगा बार-बार भावना बदले नहीं।
प्रीति आत्मक एकाग्रता:- सबसे हमेशा प्रीति बनी रहे ,कभी किसी से बिगाड़ ना हो, किसी से हमारा झगड़ा ना हो ,अंदर ना हो ,मनमुटाव ना हो, सब से प्रीत हो ।
👉🏽जैसे नाव और नदी थोड़ी देर के लिए मिलते हैं, फिर नाव🛶 अपने स्थान पर चली जाती है ,जहां ले जाना है मुसाफिरों को और नदी बहती रहती है ।थोड़े समय का ,थोड़े दिनों का मेल होता है , ना लगाव है ना प्रेम होता है ,नदी का नाव से अगर नदी का प्यार नाव से ज्यादा हो तो नाव भंवर में फंस गई ना! नाव तो गई 👎
👉🏽ऐसा मेल होना चाहिए कि हैंभी सही और नहीं भी सही, सेवार्थ और कार्यथ हो, ऊपर- ऊपर का हो, न्यारे और प्यारे 👉🏽सबके साथ प्यारे भी रहो न्यारे भी रहो... किसी से घृणा नहीं होती और किसी से लगाव- झुकाव भी नहीं... प्रीति बनी रहे लेकिन वह प्रीति ऐसी ना हो कि डुबोने वाली हो, समाप्त करने वाले, नुकसान करने वाली ना हो, विनाशकारी ना हो👈🏽 यह भाव हमेशा बना रहे ।
👉🏽मान और स्वमान आत्मक एकाग्रता:- दूसरों को हमेशा मान दो ,छोटे बच्चों को भी रिगार्ड, रिस्पेक्ट दो।
👉🏽 भक्ति मार्ग में कहते थे, 'ना जाने नारायण किस रूप में आ जाए !अरे भाई हर एक से मीठा बोलो प्यार से बोलो ना जाने नारायण किस रूप में आ जाए !
👉🏽बाबा कहते हैं , तुम मेरे रॉयल बच्चे हो, तुम साहेबजादे हो, साहिब जादे का अपमान करना हो या अपरोक्ष में भगवान का अपमान करना 👉🏽क्योंकि साहब तो वह है ना! 👉🏽बाबा के बच्चे सारे साहबजादे हैं 😊उनका रिगार्ड करो और स्वमान में रहो ,अपना भी मान रखो👍
👉🏽 आप भी नशे से खुशी से बोलो , हम ब्रह्मा की संतान ब्राह्मण कुलभूषण हैं👌 हम कोई दास नहीं, हम भगवान की संतान हैं अपना भी स्वमान होना चाहिए... बाबा कहते हैं तो, अनादि और आदि हो पूज्य और पूर्वज हो..। 👉🏽वह स्वरूप को हम याद रखेंगे तो हमारी भावात्मक स्थिरता होगी।
👉🏽 हम बाबा के बच्चे हैं इस भाव में रहकर हमें बर्दाश्त करना चाहिए।
निमित्त पन कि भावना धारणा कर, सेवा करें 👉🏽सेवा के लिए हमें झुक कर चलना चाहिए, झुक कर चलने का मतलब यह नहीं कि हम धूल है ,दास है। हम बाबा के बच्चे हमारा भी अपना रिस्पेक्ट है। 👉🏽स्वयं स्वमान में रहो और दूसरों को मान दो सब झगड़े खत्म हो जाएंगे ।
ऊपरामात्मक एकाग्रता अर्थात मन दुनिया से उठा रहे, *अब बिस्तर गोल करो ,अभी यहां से चलना है ,यह दुनिया रहने लायक नहीं है ,बिगड़ चुकी है ,एकदम अशुद्ध हो चुकी है, खराब हो चुकी है ,अब हमारा पाव यहां से उठा हुआ हो, जिसको बाबा कहते लंगर उठा लो ,बुद्धि का लंगर उठा लो ,जिसको बाबा कहते,' आंख न.डूबे.।
👉🏽 बाबा ने हमें देखने का दिव्य -नेत्र (ज्ञान नेत्र) दिया हुआ है
👉🏽 ऊपरात्मक एकाग्रता माना किसी वस्तु ,व्यक्ति के साथ चिपक न जाए ,लगाव ना हो
स्मृतियात्मक एकाग्रता:- जो हमारी स्मृती है उसकी एकाग्रता होनी चाहिए,और जितना आपने स्मृति की स्थिरता होगी उतनी आत्मा में समर्थी भरेगी ,बैटरी चार्ज करने का यही तरीका है- * स्मृति 😌👍
🌹😊 ओम शांति
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